Thursday 10 July 2014

कुछ पुरातात्विक खोजे जिन्होंने वैज्ञानिकों को कर रखा है हैरान और परेशान

विशव में हर साल बहुत सी पुरातात्विक खोजे की जाती है। इन खोजो से हमे हमारे पिछले समय के बारे में काफी जानकारी मिलती है।  लेकिन कभी कभी कुछ ऐसी खोजे हो जाती है जिसका रहस्य वैज्ञानिक भी नहीं सुलझा पाते है जैसे की सहारा के सुदूर रेगिस्तान में बना पत्थरो का ढांचा , या फिर कुछ ऐसी खोजे होती है जो वैज्ञानिको को हैरान कर के रख देती है जैसे की नवाडा में मिला विशाल इंसानी जबड़ा।  हम आपको आज कुछ ऐसी ही खोजो के बारे में विस्तार से बताएँगे।

1. शुद्ध लोहे से बना करोडो साल पुराना हथोड़ा (Hammer of the purest iron alloy) :-



इस धरती पर अब तक हुई  पुरातात्विक खोजो में से इस खोज ने वैज्ञानिको को सबसे ज्यादा हैरान किया है। अमेरिका में सन 1934 में  140 मिलियन साल पुरानी लाइमस्टोन की  चट्टानों में एक लोहे की हथोडी मिली। जब वैज्ञानिको ने इसका प्रयोगशाला मेंअध्यन्न किया तो वो दो कारणों से हैरान  रह गए। पहला की हथौड़े में लगा हुआ लकड़ी का हैंडल अंदर से कोयल बन चूका था, यानी की वो कई मिलियन साल पुरानी थी। दूसरा हैरान करने वाला कारण लोहे की एक दम शुद्ध अवस्था थी।  इतना शुद्ध लोहा  धरती की किसी भी खदान से आज तक  नहीं निकला है। लोहे की शुद्धता का अंदाज़ा इस बात से पता चलता है की 1934 में उसे चट्टान से निकलते  वक़्त खरोच  लगी  थी पर 80 साल बाद आज तक भी उस पर जंग लगने  के कोई लक्षण नहीं है। वैज्ञानिक इस हथौड़े का अनुमानित समय 145 से 60 मिलियन साल पूर्व मानते है यानी की  करोडो साल पूर्व जबकि मानव जाती ने 10000 साल पहले ही इस तरह के औजार बनाना सीखा है।

2.सहारा रेगिस्तान में पत्थरों से बना खगोलीय ढांचा  (Astronomically aligned stones in Sahara desert ) :-


सहारा के सुदूर रेगिस्तान में स्तिथ पत्थरो का यह ढांचा दुनिया के सबसे बड़े रहस्यों में से एक है। 1973 में पुरातत्व शास्त्री पहली बार यहां पहुंचे थे। 1998 में प्रोफेसर फ्रेड वैंडोर्फ की टीम ने पत्थरों के इस स्ट्रक्चर का अध्ययन किया तो पता चला कि ये करीब 6000 साल ईसा पूर्व में बनाया गया है। नाब्टा प्लाया में मिले पत्थर के स्ट्रक्चर पर रिसर्च करने से पता चला है कि ये खगोल शास्त्र और ज्योतिष से संबंधित थे। सवाल ये है कि इतनी सहस्र शताब्दियों पहले उन लोगों ने इतना विकास कैसे कर लिया था। तब वे इसका इस्तेमाल किस तरह करते थे? ये आज भी एक रहस्य बना हुआ है।

3. चीनी मोजैक लाइन्स (Chinese Mosaic lines) :-

तस्वीर में दिख रहे ये अजीबो-गरीब लकीरें 40 डिग्री 27'28.56 उत्तर व 93 डिग्री 23'24.42 पूर्व दिशा में देखी गई हैं। इस विचित्र कृति के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। चीन के गानसू शेंग के रेगिस्तान में ये लकीरें बनी हुई हैं। अंग्रेजी में इसे चीनी मोजैक लाइन्स कहा जाता है। कुछ आंकड़े बताते हैं कि 2004 में इन लकीरों को खींचा गया था। अहम बात ये है कि ये लकीरें मोगाओ की गुफा के आसपास बनाई गई हैं, जिसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्जा प्राप्त है। दिलचस्प पहलू यह है कि चट्टान के ऊबड़-खाबड़ होने के बाद भी लंबे अरसे से लकीरें बिल्कुल सीधी ही हैं।

4. पत्थर की गुड़िया (Stone Doll) :-

1889 में ईदाहो के नाम्पा में अचानक वैज्ञानिकों का रूझान बढ़ गया। वजह थी खुदाई के दौरान मिली पत्थर की गुड़िया। इसे मानव हाथों द्वारा बनाया गया है। पत्थर की ये गुड़िया 320 फीट की गहराई में खुदाई के दौरान मिली थी। इसे देख तब अंदाजा लगाया गया कि दुनिया में मानव जाति के अस्तित्व में आने के बाद शायद इस गुड़िया को बनाया गया होगा। हालांकि, पर्दे के पीछे की सच्चाई अभी भी अबूझ रहस्य बनी हुई है।

5. तीन सौ मिलियन साल पुराना लोहे का पेंच (Iron bolt, age 300 million years) :-


1998 में रूसी वैज्ञानिक दक्षिण-पश्चिम मॉस्को से करीब 300 किलोमीटर दूर एक उल्का के अवशेष की जांच कर रहे थे। इस दौरान उन्हें एक पत्थर का टुकड़ा मिला, जिसमें लोहे का पेंच संलग्न था। भूवैज्ञानिकों के मुताबिक, ये पत्थर 300 मिलियन (30 करोड़) साल पुराना है। तब न तो कोई प्रबुद्ध प्रजाति हुआ करती थी और न ही धरती पर डायनासोर हुआ करते थे। पत्थर के बीच लोहे का पेंच साफ दिखाई पड़ता है। इसकी लंबाई एक सेंटीमीटर और व्यास तीन मिलीमीटर है।

6. प्राचीन रॉकेट जहाज - जापान  (Ancient Missile Ship - Japan) :-

तस्वीर में आपको रॉकेट नुमा जहाज जैसा कुछ दिख रहा है। ये जापान की एक गुफा में बनी प्राचीन पेंटिंग है। बताया जाता है कि ये पेंटिंग 5, 000 ईसा पूर्व की है। खोजकर्ताओं के जेहन में ये सवाल अभी भी बना हुआ है कि क्या प्राचीनकाल में इस तरह का कोई विमान था। अगर नहीं, तो फिर इसे क्या सोच कर बनाया गया होगा।

7.  खिसकते पत्थर - डेथ वैली, कैलिफोर्निया  (Moving Stones - Death Valley, California) :-

कैलिफोर्निया की डेथ वैली में कुछ पत्थरों का खुद ब खुद खिसकना नासा के लिए भी अबूझ पहेली बनी हुई है। रेसट्रैक प्लाया 2.5 मील उत्तर से दक्षिण और 1.25 मील पूरब से पश्चिम ततक बिल्कुल सपाट है। लेकिन यहां बिखरे पत्थर खुद ब खुद खिसकते रहते हैं। यहां ऐसे 150 से भी अधिक पत्थर हैं। हालांकि, किसी ने उन्हें आंखों से खिसकते नहीं देखा। सर्दियों में ये पत्थर करीब 250 मीटर से ज्यादा दूर तक खिसके मिलते हैं। 1972 में इस रहस्य को सुलझाने के लिए वैज्ञानिकों की एक टीम बनाई गई। टीम ने पत्थरों के एक ग्रुप का नामकरण कर उस पर सात साल अध्ययन किया। केरीन नाम का लगभग 317 किलोग्राम का पत्थर अध्ययन के दौरान जरा भी नहीं हिला। लेकिन जब वैज्ञानिक कुछ साल बाद वहां वापस लौटे, तो उन्होंने केरीन को 1 किलोमीटर दूर पाया। अब वैज्ञानिकों का यह मानना है कि तेज रफ्तार से चलने वाली हवाओं के कारण ऐसा होता है।

8.  पिरामिड द पॉवर - मेक्सिको ( Pyramids the Power - Mexico) :-

इस प्राचीन मैक्सिकन शहर की दीवारें अभ्रक (mica) की बड़ी चादरों से बनी हैं। अभ्रक खदान के निकटतम जगह की बात करें, तो वह ब्राजील में है। लेकिन ये खदान शहर से हजारों मील की दूरी पर है। अभ्रक का इस्तेमाल प्रौद्योगिकी व ऊर्जा उत्पादन में किया जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि इन इमारतों को बनाने के लिए बिल्डर ने अभ्रक जैसे खनिज का इस्तेमाल क्यों किया होगा। क्या आर्किटेक्ट शहर में बिजली के लिए स्रोत का दोहन कर रहे थे?
9. विशाल जीवाश्म - आयरलैंड  (Fossil Giants - Ireland) :-

इस विशाल आइरिश जीवाश्म की लंबाई 12 फीट से ज्यादा है। इसकी खोज आयरलैंड के अंतरिम में खुदाई के दौरान हुई थी। इस तस्वीर को 'द ब्रिटिश स्ट्रैंड मैगजीन ऑफ दिसंबर 1895' से लिया गया है। मैगजीन के मुताबिक, जीवाश्म की लंबाई 12 फीट 2 इंच, सीने की परिधि 6 फीट 6 इंच, बाजुओं की लंबाई 4 फीट 6 इंच है। इसके अलावा दाएं पैर में छह अंगुलियां हैं।

10.  पिरामिड ऑफ अटलांटिस  -  यूकैटन खाड़ी, क्यूबा  (Pyramids of Atlantis - Yucatan Channel, Cuba) :-

क्यूबा के निकट तथाकथित यूकैटन खाड़ी में वैज्ञानिकों द्वारा मेगालिथ के खंडहर के रहस्य का पता लगाने का सिलसिला जारी है। इस खोज में वे तटीय क्षेत्र का मीलों लंबा सफर तय कर चुके हैं। जिन अमेरिकी पुरातत्वविदों ने इस जगह की खोज की, उन्होंने फौरन एक घोषणा कर कहा कि उन्होंने अटलांटिस ढूंढ निकाला है। अब ये स्कूबा डाइवर्स के लिए पसंदीदा जगहों में से एक है।

11. भीमकाय इंसानी जबड़ा -  नेवाडा, अमेरिका (Giant Human Jaws, Nevada -America ) :-

ऐसा कहा जाता है कि नेवाडा में लाल बाल वाले 12 फीट लंबे इंसान रहा करते थे। ये कहानी अमेरिकियों द्वारा एक गुफा में भीमकाय लोगों की हत्या से जुड़ी है। 1911 में खुदाई के दौरान ये मानव जबड़ा मिला है। तस्वीर में सामान्य व भीमकाय जबड़े को एकसाथ तुलना कर दिखाया गया है। इसके अलावा 1931 में दो मानव कंकाल भी मिले थे, जिनकी लंबाई 8 व 10 फीट थी।
12. एल्युमीनियम कील - रोमानिया (Aluminium Wedge - Romania) :-

1974 में त्रानसिलवेनिया की मुर्स नदी में 20, 000 साल पुराने मैस्तदन की हड्डियों के साथ एक अलुमिनिम की कील मिली थी। इस कील पर आक्साइड की एक मिलीमीटर मोटी परत चढ़ी हुई थी। वैज्ञानिकों के मुताबिक, कील 300-400 साल पुरानी है। गौरतलब है कि अलुमिनियम हमेशा अन्य धातुओं के साथ मिश्रित पाया जाता है, लेकिन चार सौ साल पुरानी ये कील विशुद्ध अलुमिनियम की बनी हुई है। वैज्ञानिकों के बीच अबूझ पहेली ये है कि 1808 के पहले तक अलुमिनियम की खोज ही नहीं हुई थी। ऐसे में चार सौ साल पहले विशुद्ध अलुमिनियम कैसे आ सकता है।

13. लोलाडॉफ प्लेट - नेपाल (Plate Loladoffa - Nepal) :-

नेपाल में 12, 000 साल पहले पत्थर से बनी थाली का चलन था। हालांकि, इस थाली को देख यूएफओ की झलक दिखाई देती है। तस्वीर में आप देख सकते हैं कि थाली में एलियन नुमा आकृति बनी हुई है।

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दुनिया के विभिन्न देशों के 10 अजीबो गरीब ड्राइविंग रूल्स (10 Weird Driving Rules Around The World)

दुनिया के विभिन्न देशों के 10 अजीबो गरीब ड्राइविंग रूल्स (10 Weird Driving Rules Around The World)
दुनिया के विभिन्न देशो में ड्राइविंग को लेकर बड़े ही विचित्र नियम है। हम आपको यहाँ पर कुछ ऐसे ही विचित्र नियमो के बारे में बता रहे है।

1
अलास्का- इस अमेरिकी राज्य में लोग कार के ऊपर कुत्ता बैठाकर ड्राइव नहीं कर सकते।
Alaska- In Alaska it is illegal to tie a dog to the roof of your car.



2
कैलिफोर्निया-  यहां लेडीज  ड्रेसिंग गाउन पहनकर ड्राइव नहीं कर सकती  हैं।
California - Women driving on Californian roads are prohibited from doing so while wearing a dressing gown.


3
साइप्रस- साइप्रस में आप कार में कुछ भी नहीं खा पी सकते है यहाँ तक कि आप पानी भी नहीं पी सकते है। यहां कार में पानी पीना भी अपराध है।
Cyprus - Eating or drinking anything while driving in Cyprus is illegal. Even Water.


4
स्पेन- अगर आप स्पेन में हैं और आपको चश्मा लगा है। तो उसकी एक अतिरिक्त जोड़ी आपको कार में रखनी ही होगी।
Spain - In Spain, you must have an extra pair of glasses in the car at all times, even if you're already wearing a pair.


5
स्कैंडिनेवियाई देश-  डेनमार्क और स्वीडन में दिन के वक्त भी बगैर हेडलाइट चालू किए गाड़ी नहीं चला सकते हैं।
 Scandinavia - It is illegal to drive without headlights, even in daylight.


6
रूस- इस देश में मैली गाड़ी चलाना मना है। यानी घर से निकलने से पहले गाड़ी साफ करनी ही होगी।
Russia - In Russia, you/ll be fined if you're driving a dirty car


7
मनीला-  अगर आप फिलीपिंस की राजधानी मनीला में है और गाड़ी की प्लेट का नंबर एक या दो पर खत्म होता है तो सोमवार के दिन गाड़ी नहीं चला सकते हैं।
 Philippines - In Manila, you are not allowed to drive on Mondays if you number plate ends in 1 or 2.


8
सऊदी अरब- इस देश में अगर कोई महिला गाड़ी चलाए तो वह गिरफ्तार हो जाएगी, क्योंकि यह अपराध है।
Saudi Arabia - Women are not allowed driving in Saudi Arabia


9
सर्बिया- यहां के लोग गाड़ी चलाते समय एक टो बार और तीन मीटर लंबी रस्सी पास न रखें तो उन्हें जुर्माना भरना पड़ता है।
Serbia- All cars in Serbia must have a tow bar and a three -meter toe rope.



10
कोलोराडो  - कोलोराडो के डेन्वेर शहर में सन्डे के दिन आप ब्लैक कलर कि गाडी नहीं चला सकते।
Colorado - In Denver, Colorado, it is illegal to drive a black car on Sundays.


Sunday 6 July 2014

सच्ची कहानी - एक भारतीय राजकुमारी जो बनी दुनिया की जांबाज जासूस

Real story of a Indian Spy Princess :-
यह सच्ची और जाबांज़ कहानी है एक युवती नूर इनायत खान की, जो की मैसूर के महान शासक टीपू सुल्तान के राजवंश की राजकुमारी थी। बेहद खूबसूरत और मासूमियत से भरा चेहरा, आंखों की गहराई, वीणा पर थिरकती उंगलियां और रूह तक सीधे पहुंचने वाले सूफियाना कलाम के सुरीले बोल... ये सब नूर इनायत खान के  व्यक्तित्व का कभी हिस्सा हुआ करते थे, लेकिन नाजियों की तानाशाही नीति और द्वितीय विश्वयुद्ध के शुरू होने की घटना ने इस प्रिंसेस को अंदर तक झकझोर दिया था। यहीं से उसकी जिंदगी बदल गई और वह विश्व की एक जांबाज जासूस बन गई। सबसे हैरत की बात है कि वह ब्रिटेन की साम्राज्यवाद की नीति की विरोधी होने के बावजूद भी उनके लिए लड़ी। राजकुमारी हजरत नूर-उन-निसा इनायत खान ने द्वितीय विश्वयुद्ध में तानाशाह हिटलर की सेना के खिलाफ बड़े मिशन पर काम करते हुए गोली खाकर जान दे दी।



प्रारंभिक जीवन :-
नूर इनायत का जन्म 1 जनवरी, 1914 को मॉस्को में हुआ था। उनका पूरा नाम "नूर-उन-निशा इनायत खान" है। वे चार भाई-बहन थे,  वे अपने चारो भाई-बहनों में सबसे बड़ी थी। उनके पिता भारतीय और मां अमेरिकी थीं। उनके पिता हजरत इनायत खान 18 वीं सदी में मैसूर राज्य के टीपू सुल्तान के पड़पोते थे, जिन्होंने भारत के सूफीवाद को पश्चिमी देशों तक पहुंचाया था। वे एक धार्मिक शिक्षक थे, जो परिवार के साथ पहले लंदन और फिर पेरिस में बस गए थे। पूरा परिवार पश्चिमी देशों में ही रहने लगा। वही संगीत की रुचि नूर के भीतर भी जागी और वे बच्चों के लिए जातक कथाओं पर आधारित कहानियां लिखने लगी। उन्हें वीणा बजाने का शौक जूनून की हद तक था। 


नूर इनायत खान परिवार के साथ 

प्रथम विश्व युद्ध के तुरंत बाद उनका परिवार मॉस्को,रूस से लंदन आ गया था, जहां नूर का बचपन बिता।  1920 में वे फ्रांस चली गई, जहां वे पेरिस के निकट सुरेसनेस के एक घर में अपने परिवार के साथ रहने लगी। यह घर उन्हे सूफी आंदोलन के एक अनुयाई के द्वारा उपहार में मिला था। 1927 में पिता की मृत्यु के बाद उनके ऊपर माँ और छोटे भाई-बहनों की ज़िम्मेदारी आ गई। स्वभाव से शांत, शर्मीली और संवेदनशील नूर संगीत को जीविका के रूप में इस्तेमाल करने लगी और पियानो की धुन पर संगीत का प्रसार करने लगी। कविता और बच्चों की कहानियाँ लिखकर अपने कैरियर को सँवारने लगी। साथ ही फ्रेंच रेडियो में नियमित योगदान भी देने लगी। 1939 में बौद्धों की जातक कथाओं से प्रभावित होकर उन्होने एक पुस्तक बीस जातक कथाएं  नाम से लंदन से प्रकाशित की। द्वितीय विश्व युद्ध के फैलने के बाद,फ्रांस और जर्मन की लड़ाई के दौरान वे 20जून 1940 को अपने परिवार के साथ समुद्री मार्ग से ब्रिटेन के फालमाउथ, कॉर्नवाल लौट आयीं।  


पहले वायु सेना और बाद में ख़ुफ़िया विभाग में भर्ती :-
अपने पिता के शांतिवादी शिक्षाओं से प्रभावित नूर को नजियों के अत्याचार से गहरा सदमा लगा। जब फ्रांस पर नाज़ी जर्मनी ने हमला किया तो उनके दिमाग़ में उसके ख़िलाफ़ वैचारिक उबाल आ गया। उन्होने अपने भाई विलायत के साथ मिलकर नाजी अत्याचार को कुचलने का निर्णय लिया।  19 नवंबर 1940 को, वे वायु सेना में द्वितीय श्रेणी एयरक्राफ्ट अधिकारी के रूप में शामिल हुईं, जहां उन्हें "वायरलेस ऑपरेटर" के रूप में प्रशिक्षण हेतु भेजा गया। जून 1941 में उन्होने आरएएफ बॉम्बर कमान के बॉम्बर प्रशिक्षण विद्यालय में आयोग के समक्ष "सशस्त्र बल अधिकारी" के लिए आवेदन किया, जहां उन्हें सहायक अनुभाग अधिकारी के रूप में पदोन्नति प्राप्त हुई।


बाद में नूर को स्पेशल ऑपरेशंस कार्यकारी के रूप में एफ (फ्रांस) की सेक्शन में जुड़ने हेतु भर्ती किया गया और फरवरी 1943 में उन्हें वायु सेना मंत्रालय में तैनात किया गया। उनके वरिष्ठों में गुप्त युद्ध के लिए उनकी उपयुक्तता पर मिश्रित राय बनी और यह महसूस किया गया कि अभी उनका प्रशिक्षण अधूरा है, किन्तु फ्रेंच की अच्छी जानकारी और बोलने की क्षमता ने स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप का ध्यान उन्होने अपनी ओर आकर्षित कर लिया,फलत: उन्हें वायरलेस आपरेशन युग्मित अनुभवी एजेंटों की श्रेणी में एक एक वांछनीय उम्मीदवार के तौर पर प्रस्तुत किया गया। फिर वह बतौर जासूस काम करने के लिए तैयार की गईं और 16-17 जून 1943 में उन्हें जासूसी के लिए रेडियो ऑपरेटर बनाकर फ्रांस भेज दिया गया। उनका कोड नाम 'मेडेलिन' रखा गया। वे भेष बदलकर अलग-अलग जगह से संदेश भेजती रहीं।


द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नूर विंस्टन चर्चिल के विश्वसनीय लोगों में से एक थीं। उन्हें सीक्रेट एजेंट बनाकर नाजियों के कब्जे वाले फ्रांस में भेजा गया था। नूर ने पेरिस में तीन महीने से ज्यादा वक्त तक सफलतापूर्वक अपना खुफिया नेटवर्क चलाया और नाजियों की जानकारी ब्रिटेन तक पहुंचाई। पेरिस में 13 अक्टूबर, 1943 को उन्हें जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। इस दौरान खतरनाक कैदी के रूप में उनके साथ व्यवहार किया जाता था। हालांकि इस दौरान उन्होंने दो बार जेल से भागने की कोशिश की, लेकिन असफल रहीं। गेस्टापो के पूर्व अधिकारी हैंस किफर ने उनसे सूचना उगलवाने की खूब कोशिश की, लेकिन वे भी नूर से कुछ भी उगलबा नहीं पाए। 25 नवंबर, 1943 को इनायत एसओई एजेंट जॉन रेनशॉ और लियॉन के साथ सिचरहिट्सडिन्ट्स (एसडी), पेरिस के हेडक्वार्टर से भाग निकलीं, लेकिन वे ज्यादा दूर तक भाग नहीं सकीं और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। बात 27 नवंबर, 1943 की है। अब नूर को पेरिस से जर्मनी ले जाया गया। नवंबर 1943 में उन्हें जर्मनी के फॉर्जेम जेल भेजा गया। इस दौरान भी अधिकारियों ने उनसे खूब पूछताछ की, लेकिन उसने कुछ नहीं बताया। 


डकाऊ स्थित नूर का प्रतिरोध स्मारक

उन्हें दस महीने तक बेदर्दी से प्रताड़ित किया गया, फिर भी उन्होंने अपनी जुबान नहीं खोली। नूर वास्तव में एक मजबूत और बहादुर महिला थीं। 11 सिंतबर, 1944 को उन्हे और उसके तीन साथियों को जर्मनी के डकाऊ प्रताड़ना कैंप ले जाया गया, जहां 13 सितंबर, 1944 की सुबह चारों के सिर पर गोली मारने का आदेश सुनाया गया। यद्यपि सबसे पहले नूर को छोडकर उनके तीनों साथियों के सिर पर गोली मार कर हत्या की गई। तत्पश्चात नूर को डराया गया कि वे जिस सूचना को इकट्ठा करने के लिए ब्रिटेन से आई थी, वे उसे बता दे। लेकिन उसने कुछ नहीं बताया, अंतत: उनके भी सिर पर गोली मारकर हत्या कर दी गई। जब उन्हें गोली मारी गई, तो उनके होठों पर शब्द था -"फ्रीडम यानी आजादी"। इस उम्र में इतनी बहादुरी कि जर्मन सैनिक तमाम कोशिशों के बावजूद उनसे कुछ भी नहीं जान पाए, यहां तक कि उनका असली नाम भी नहीं। उसके बाद सभी को शवदाहगृह में दफना दिया गया। मृत्यु के समय उनकी उम्र सिर्फ 30 वर्ष थी।


जर्मनी में डचाउ में नाजियों का यह यातना कैंप, जहां नूर को गोली मारी गई थी

ब्रिटेन की सरकार ने 2012 में  नूर के बलिदान को सम्मान देते हुए लंदन में उनकी प्रतिमा स्थापित करवाई। ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ की बेटी ऐन ने भारतीय मूल की राजकुमारी की मूर्ति का अनावरण करते हुए सम्मान व्यक्त किया था। ब्रिटिश सरकार ने नूर इनायत खान को अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान जॉर्ज क्रास दिया। फ्रांस ने भी अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान-क्रोक्स डी गेयर से उन्हें नवाजा।


ब्रिटेन में नूर इनायत खान की कांसे की प्रतिमा 

भारतीय मूल की पत्रकार श्रावणी घोष ने भारतीय राजकुमारी पर एक किताब 'स्पाई प्रिसेंस' लिखी है तथा हॉलीवुड में इन पर 'Enemy of the Reich' नाम से फिल्म बन चुकी है। 


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इच्छाशक्ति का कमाल - बिना हाथ पैरों के बन गया स्टार फ़ुटबाल प्लेयर

यह फ़िल्मी सी लगने वाली लेकिन सच्ची कहानी सर्बिया के जोर्ग डायकसन की है।  16 साल के जोर्ग डायकसन अपनी स्कूल की फ़ुटबाल टीम के स्टार खिलाडी है, जबकि उनके दोनों हाथ और दोनों पैर नहीं है।  वे  फ़ुटबाल प्रोस्थेटिक पैरों की मदद से खेलते है।


बचपन में ही गवा दिये थे हाथ पैर :-
जोर्ग डायकसन जब 18 महीने के थे तब उनके शरीर में गंभीर इन्फेक्शन हुआ था। डाक्टरों के इलाज़ के बावजूद भी उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ  और ज्यादा खराब होती गई।  इन्फेक्शन तेज़ी से हाट पैरों में फैलने लगा। डाक्टरों के पास जोर्ग की जान बचने के लिए उसके हाथ - पाँव कालने के  नहीं बच था और उन्होंने ऐसा ही किया।  मात्र 18 महीने की उम्र में ही जोर्ग अपाहिज हो गए।


माँ - बाप को देना पड़ा गोद :-
विकलांग होने के बाद जोर्ग को विशेष और इलाज़ की  जरूरत थी जिसके लिए बहुत अधिक धन की आवश्यकता थी। चुकी जोर्ग के माता - पिता की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी इसलिए उन्होंने उसे गॉड देने का निश्चय किया।  इसके लिए उन्होंने 'हीलिंग द चिल्ड्रन' सोसाइटी की मदद ली और उसके मार्फ़त यह बच्चा एक दंपति जान डायक्स और फेये को गॉड दे दिया गया।  उस दम्पति ने उसके बेहतरीन इलाज़ और शिक्षण की व्यवस्था की। उसके बड़ा होने पर उन्होंने उसे, उसकी शारारिक अक्षमता से उबरने के लिए फ़ुटबाल खेलने के लिए प्रेरित किया और उसके लिए एक कोच की व्यवस्था की।


जोर्ग को शुरूआत में लगा शायद वो नकली पैरों से फ़ुटबाल नहीं खेल पायेगा लेकिन जैसे-जैसे उसने प्रेक्टिस शुरू की उसका आत्मविश्वास बढ़ता गया। खुद के आत्मविश्वास , माता-पिता की प्रेरणा और कोच की कड़ी ट्रेनिंग की बदौलत उसे अपनी स्कूल की फ़ुटबाल टीम में चुन लिया गया और आज वो अपनी स्कूल टीम का एक स्टार खिलाडी है।


हौसलें कि कहानी - बिना हाथ पैरों के फतह कर ली 14 हजार फीट से अधिक ऊंची चोटी

कहते है कि अगर आपके हौसलें मजबूत हो इरादे फौलादी हो तो दुनिया कि कोई ताकत आपको अपने लक्ष्य को प्राप्त करने से नहीं रोक सकती है। जेमी एंड्रयू ऐसे ही एक मजबूत हौसलें और फौलादी इरादो वाले व्यक्ति है।जेमी एंड्रयू की रियल स्टोरी जानकर कोई भी व्यक्ति हैरत में पड़ सकता है। 44 वर्षीय जेमी एंड्रयू ने जिस शौक के चलते आज से 15 साल पहले अपने हाथ-पैर गंवा दिए थे, उसी को पूरा करने के लिए 14,691.6 फीट (4,478 मीटर) ऊंची मैटरहॉर्न माउंटेन (माउंट सेरविने) को फतह किया है। खास बात है कि एंड्रयू जब पहले हाथ-पैर रहते हुए पर्वतारोहरण करते थे, तब भी उन्होंने इतनी ऊंचाई कभी नहीं चढ़ी थी।



एंड्रयू ने बिना हाथ और पैरों के स्विटजरलैंड के जेरमैट कस्बे के पास मैटरहॉर्न माउंटेन की चढ़ाई पूरी की है। स्कॉटलैंड की राजधानी ईडनबर्ग निवासी इस पर्वतारोही को उम्मीद है कि उनके इस साहसिक कारनामें से दूसरों को प्रेरणा मिलेगी। खासतौर, से उन लोगों को, जो शारीरिक रूप से विकलांग होने पर साहसिक कारनामे करने से डरते हैं।



एंड्रयू ने बिना हाथ और पैरों के स्विटजरलैंड के जेरमैट कस्बे के पास मैटरहॉर्न माउंटेन की चढ़ाई पूरी की है। स्कॉटलैंड की राजधानी ईडनबर्ग निवासी इस पर्वतारोही को उम्मीद है कि उनके इस साहसिक कारनामें से दूसरों को प्रेरणा मिलेगी। खासतौर, से उन लोगों को, जो शारीरिक रूप से विकलांग होने पर साहसिक कारनामे करने से डरते हैं।




यह अल्प्स पर्वत और यूरोप की सबसे ऊंची चोटी है। इस चोटी पर 1865 से पर्वतारोहरण की शुरुआत होने के बाद से अब तक करीब 500 से अधिक पर्वतारोहियों की मौत हो चुकी है। दो हाथ और दो पैर खोने के बाद अदम्य साहसी कारनामा करने वाले जेमी एंड्रयू पर आधारित स्टोरी चैनल-5 अगले माह से प्रसारित करेगा।



जेमी एंड्रयू और उनके दोस्त जेमी फिशर 15 साल पहले मोंट ब्लांक में 4000 मीटर ऊंची लेस ड्रोइट्स माउंटेन में बर्फीले तूफान में फंस गए थे। बर्फीली हवाएं 90 मील प्रति घंटे की गति से बह रहीं थीं। इस दौरान वह 4 दिन वहां फंसे रहे और फिशर की मौत हो गई।



हालांकि, बचाव दल एंड्रयू को वहां से निकाल लाया, लेकिन उनके हाथ-पैर ठंड से बुरी तरह से प्रभावित हुए। डॉक्टरों के पास उनके हाथ- काटने के अलावा कोई भी दूसरा विकल्प नहीं था। ऑपरेशन के बाद उन्होंने कृत्रिम हाथ-पैरों को अपनाया।



कुछ ही साल बाद एंड्रयू फिर पहाड़ों की ओर वापस आ गए। वह फिर से उस जगह जाना चाहते थे, जहां उनके दोस्त की मौत हुई थी। उन्होंने ईडनबर्ग की एक छोटी पहाड़ी पर चढऩे का अभ्यास करना शुरू किया। यूरोप की सबसे अधिक ऊंची चोटी पर चढऩे के कारनामा करने के दौरान मिशन में एंड्रयू के पार्टनर स्टीव जोंस रहे।