Sunday, 15 June 2014

विल्मा रुडोल्फ - अपंगता से ओलम्पिक गोल्ड मैडल तक

Hindi Motivational Story, Hindi Inspirational Story



यह कहानी है उस लड़की की जिसे ढाई साल की उम्र में पोलियो हुआ, जो 11 साल की उम्र तक बिना ब्रेस के चल नहीं पाई पर जिसने 21 साल की उम्र में 1960 के ओलम्पिक में दौड़ में 3 गोल्ड मैडल जीते.....

यह कहानी है उस लड़की की जिसका जन्म बेहद गरीब परिवार में हुआ पर गरीबी जिसके होंसलो को नहीं तोड़ पाई.....

यह कहानी है उस लड़की की जिसका जन्म  एक अश्वेत परिवार में हुआ (तब अमेरिका में अश्वेतों को दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता था ), पर जिसके सम्मान में आयोजित भोज समारोह में, पहली बार अमेरिका में, श्वेतो और अश्वेतों ने एक साथ हिस्सा लिया....
यह कहानी है विल्मा रुडोल्फ की....



Willma Rudolph in childhood

विल्मा का जन्म 1939 में अमेरिका के टेनेसी राज्य के एक कस्बे में हुआ। विल्मा के पिता रुडोल्फ कुली व माँ सर्वेंट का काम करती थी। विल्मा 22 भाई - बहनों में 19 वे नंबर की थी।
विल्मा बचपन से ही बेहद बीमार रहती थी, ढाई साल की उम्र में उसे पोलियो हो गया।  उसे अपने पेरों को हिलाने में भी बहुत दर्द होने लगा। बेटी की ऐसी हालत देख कर, माँ ने बेटी को सँभालने के लिए अपना काम छोड़ दिया और उसका इलाज़ शुरू कराया।  माँ सप्ताह में दो बार उसे, अपने कस्बे से 50 मील दूर स्तिथ हॉस्पिटल में इलाज के लिए लेकर जाती, क्योकि वो ही सबसे नजदीकी हॉस्पिटल था जहा अश्वेतों के इलाज की सुविधा थी। बाकी के पांच दिन घर में उसका इलाज़ किया जाता। विल्मा का मनोबल बना रहे इसलिए माँ ने उसका प्रवेश एक विधालय में करा दिया।  माँ उसे हमेशा अपने आपको बेहतर समझने के लिए प्रेरित करती।
पांच साल तक इलाज़ चलने के बाद विल्मा की हालत में थोडा सुधर हुआ।  अब वो एक पाँव में ऊँचे ऐड़ी के जूते पहन कर खेलने लगी। डॉक्टर ने उसे बास्केट्बाल खेलने की सलाह दी। विल्मा का इलाज कर रहे डॉक्टर के. एमवे. ने कहा था की विल्मा कभी भी बिना ब्रेस के नहीं चल पाएगी।  पर माँ के समर्पण और विल्मा की लगन के कारण, विल्मा ने 11 साल की उम्र में अपने ब्रेस उतारकर पहली बार बास्केट्बाल खेली।

 यह उनका इलाज कर रहे डॉक्टर के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था। जब यह बात डॉक्टर के. एम्वे. को पता चली तो वो उससे मिलने आये। उन्होंने उससे ब्रेस उतारकर दौड़ने को कहा।  विल्मा ने फटाफट ब्रेस उतारा और चलने लगी।  कुछ फीट चलने के बाद वो दौड़ी और गिर पड़ी।  डॉक्टर एम्वे. उठे और किलकारी मारते हुए विल्मा के पास पहुचे।  उन्होंने विल्मा को उठाकर सीने से लगाया और कहा शाबाश बेटी। मेरा कहा गलत हुआ, पर मेरी साध पूरी हुई। तुम दौडोगी, खूब दौडोगी और सबको पीछे छोड़ दौगी। विल्मा ने आगे चलकर एक इंटरव्यू में कहा था की डॉक्टर एम्वे. की उस शाबाशी ने जैसे एक चट्टान तोड़ दी और वहां  से एक उर्जा की धारा बह उठी। मेनें सोच लिया की मुझे संसार की सबसे तेज धावक बनना है।

इसके बाद विल्मा की माँ ने उसके लिए एक कोच का इंतजाम किया। विल्मा की लगन और संकल्प को देखकर स्कुल ने भी उसका पूरा सहयोग किया।  विल्मा पुरे जोश और लग्न के साथ अभ्यास करने  लगी।  विल्मा ने 1953 में पहली बार अंतर्विधालीय दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लिया।  इस प्रतियोगिता में वो आखरी स्थान पर रही।  विल्मा ने अपना आत्मविश्वास कम नहीं होने दिया उसने पुरे जोर - शोर से अपना अभ्यास जारी रखा।  आखिरकार आठ असफलताओं के बाद नौवी प्रतियोगिता में उसे  जीत  नसीब हुई। इसके बाद विल्मा ने पीछे मुड कर नहीं देखा वो लगातार बेहतरीन  प्रदर्शन करती रही जिसके फलस्वरूप उसे 1960 के
रोम ओलम्पिक मे देश का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला ।

ओलम्पिक मे विल्मा ने 100 मिटर दौड, 200 मिटर दौड और 400 मिटर रिले दौड मे गोल्ड मेडल जीते । इस तरह विल्मा, अमेरिका की प्रथम अश्वेत महिला खिलाडी बनी जिसने दौड की तीन प्रतियोगिताओ मे गोल्ड मेडल जीते। अखबारो ने उसे ब्लैक गेजल की उपाधी से नवाजा जो बाद मे धुरंधर अश्वेत खिलाडीयो  का पर्याय बन गई।

वतन वापसी पर उसके सम्मान में एक भोज समारोह का आयोजन हुआ जिसमे पहली बार श्वेत और अश्वेत अमेरिकियों ने एक साथ भाग लिया, जिसे  की विल्मा अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी जीत मानती थी।
आखिर में एक बात विल्मा ने हमेशा अपनी जीत का सार श्रेय अपनी माँ को दिया, विल्मा ने हमेशा कहा की अगर माँ उसके लिय त्याग नहीं करती तो वो कुछ नहीं कर पाती।

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