Hindi Motivational Story
लोग अचंभित रहे जाते है, आखिर ये कैसे हो गया। जीस हाथ से वो एक साल पहले तक लिख भी नहीं सकता था, उसे उसने इतना ट्रेन्ड कैसे कर लिया की वो गोल्ड मैडल जीत गया। लोगो के लिए ये एक miracle था Karoly को देश विदेश में खूब सम्मान मिला। पुरे हंगरी को फिर विश्वास हो गया की 1940 के ओलंपिक्स में पिस्टल शूटिंग का गोल्ड मैडल Karoly ही जीतेगा। पर वक़्त ने फिर Karoly के साथ खेल खेला और 1940 के ओलंपिक्स वर्ल्ड वार के कारण कैंसिल हो गए।
Karoly निराशा नहीं हुआ उसने अपना पूरा ध्यान 1944 के ओलंपिक्स पर लगा दिया। पर वक़्त तो जैसे उसके धीरज की परीक्षा लेने के लिए आतुर था 1944 के ओलंपिक्स भी वर्ल्ड वार के कारण कैंसिल हो गए।
एक बार फिर हंगरी वासियों का विश्वास डगमगाने लगा क्योकि Karoly की उम्र बढती जा रही थी। खेलो में उम्र और परदर्शन का गहरा रिश्ता होता है। एक उम्र के बाद आपके परदर्शन में कमी आने लगती है। पर Karoly का सिर्फ एक ही लक्ष्य था पिस्टल शूटिंग में ओलंपिक्स में गोल्ड मैडल इसलिए उसने निरंतर अभ्यास जारी रखा। आख़िरकार 1948 के ओलंपिक्स आयोजित हुए, Karoly ने उसमे हिस्सा लिया और अपने देश के लिए पिस्टल शूटिंग का गोल्ड मैडल जीता। सारा हंगरी खुसी से झूम उठा, क्योकि Karoly ने वो कर दिखाया जो और के लिए असंभव था। पर Karoly यही नहीं रुका उसने 1952 के ओलंपिक्स में भी भाग लिया और वहा भी गोल्ड मैडल जीत कर इतिहास बना दिया। Karoly उस पिस्टल इवेंट में लगातार दो गोल्ड मैडल जीतने वाला पहला खिलाडी बना ।
दोस्तों यह थी Karoly की कहानी जिसने अपनी असीम इच्छासक्ति से वो कर के दिखाया जिसके बारे में आप और हम सोच भी नहीं सकते। सोचो यदि हमारे साथ ऐसा होता तो हम क्या करते, शायद हम पूरी जिन्दगी अपनी किस्मत और भगवान् को दोष देते रहते। पर Karoly ने ऐसा कुछ भी नहीं किया उसने अपना पूरा ध्यान अपने टारगेट पर लगाया।
इसलिए दोस्तों, जिन्दगी के किसी भी मोड़ पर आपको लगे की वक़्त और परिस्थितिया आपका साथ नहीं दे रहे, आपके लक्ष्य को प्राप्त करने में तो एक बार Karoly, उसके संधर्ष, उसकी इच्छाशक्ति के बारे में जरुर सोचना।
विल्मा रुडोल्फ - अपंगता से ओलम्पिक गोल्ड मैडल तक
और आखिर में सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' जी की एक प्रेरणास्पद कविता:-
|| कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ||
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है, चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है ।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है, चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है ।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है, जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है ।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में, बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में ।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।
असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो, क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो ।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम, संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम ।
कुछ किये बिना ही जय जयकार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।
इस संसार में कुछ ऐसे भी लोग हुए है जिन्होंने अपनी असीम इच्छाशक्ति से ऐसे कामो को अंजाम दिया जो की औरो के लिए असंभव थे। ऐसे ही एक शख्स थे "Karoly Takacs". Karoly, Hungarian Army में काम करते थे। वह एक बहतरीन पिस्टल शूटर थे। उन्होंने 1938 के नेशनल गेम्स में बहतरीन प्रदर्शन करते हुए परतियोगिता जीती थी। उनके प्रदर्शन को देखते हुए पुरे हंगरी वासियों को विश्वास हो गया था की 1940 के ओलंपिक्स में Karoly देश के लिए गोल्ड मैडल जीतेगा।
पर कहते है की होनी को कुछ और ही मंजूर होता है ऐसा ही Karoly के साथ हुआ।1938 के नेशनल गेम्स के तुरंत बाद, एक दिन आर्मी ट्रेनिंग कैंप में Karoly के सीधे हाथ में ग्रेनेड फट जाता है। Karoly का वो हाथ,
जिसे उसने बचपन से ट्रेंड किया था, हमेशा के लिए शरीर से अलग हो जाता है। सारा हंगरी गम में डूब जाता है। उनका ओलंपिक्स गोल्ड मैडल का सपना खतम हो जाता है। दूसरी तरफ Karoly हार नहीं मानता है। उसे, अर्जुन की तरह अपने लक्ष्य के अलावा कुछ नज़र नहीं आता है। इसलिए वो किसी को बिना बताये अपने लेफ्ट हैण्ड से प्रैक्टिस शुरू कर देता है। इसके लगभग एक साल बाद 1939 के नेशनल गेम्स में वो लोगो के सामने आता है, और गेम्स में भाग लेने की बात कहकर सबको आश्चर्य में दाल देता है। उसे गेम्स में भाग लेने की इज़ाज़त मिलती है, वो पिस्टल शूटिंग में भाग लेता है और चमत्कार करते हुए गोल्ड मैडल जीत लेता है।
पर कहते है की होनी को कुछ और ही मंजूर होता है ऐसा ही Karoly के साथ हुआ।1938 के नेशनल गेम्स के तुरंत बाद, एक दिन आर्मी ट्रेनिंग कैंप में Karoly के सीधे हाथ में ग्रेनेड फट जाता है। Karoly का वो हाथ,
जिसे उसने बचपन से ट्रेंड किया था, हमेशा के लिए शरीर से अलग हो जाता है। सारा हंगरी गम में डूब जाता है। उनका ओलंपिक्स गोल्ड मैडल का सपना खतम हो जाता है। दूसरी तरफ Karoly हार नहीं मानता है। उसे, अर्जुन की तरह अपने लक्ष्य के अलावा कुछ नज़र नहीं आता है। इसलिए वो किसी को बिना बताये अपने लेफ्ट हैण्ड से प्रैक्टिस शुरू कर देता है। इसके लगभग एक साल बाद 1939 के नेशनल गेम्स में वो लोगो के सामने आता है, और गेम्स में भाग लेने की बात कहकर सबको आश्चर्य में दाल देता है। उसे गेम्स में भाग लेने की इज़ाज़त मिलती है, वो पिस्टल शूटिंग में भाग लेता है और चमत्कार करते हुए गोल्ड मैडल जीत लेता है।
लोग अचंभित रहे जाते है, आखिर ये कैसे हो गया। जीस हाथ से वो एक साल पहले तक लिख भी नहीं सकता था, उसे उसने इतना ट्रेन्ड कैसे कर लिया की वो गोल्ड मैडल जीत गया। लोगो के लिए ये एक miracle था Karoly को देश विदेश में खूब सम्मान मिला। पुरे हंगरी को फिर विश्वास हो गया की 1940 के ओलंपिक्स में पिस्टल शूटिंग का गोल्ड मैडल Karoly ही जीतेगा। पर वक़्त ने फिर Karoly के साथ खेल खेला और 1940 के ओलंपिक्स वर्ल्ड वार के कारण कैंसिल हो गए।
Karoly निराशा नहीं हुआ उसने अपना पूरा ध्यान 1944 के ओलंपिक्स पर लगा दिया। पर वक़्त तो जैसे उसके धीरज की परीक्षा लेने के लिए आतुर था 1944 के ओलंपिक्स भी वर्ल्ड वार के कारण कैंसिल हो गए।
एक बार फिर हंगरी वासियों का विश्वास डगमगाने लगा क्योकि Karoly की उम्र बढती जा रही थी। खेलो में उम्र और परदर्शन का गहरा रिश्ता होता है। एक उम्र के बाद आपके परदर्शन में कमी आने लगती है। पर Karoly का सिर्फ एक ही लक्ष्य था पिस्टल शूटिंग में ओलंपिक्स में गोल्ड मैडल इसलिए उसने निरंतर अभ्यास जारी रखा। आख़िरकार 1948 के ओलंपिक्स आयोजित हुए, Karoly ने उसमे हिस्सा लिया और अपने देश के लिए पिस्टल शूटिंग का गोल्ड मैडल जीता। सारा हंगरी खुसी से झूम उठा, क्योकि Karoly ने वो कर दिखाया जो और के लिए असंभव था। पर Karoly यही नहीं रुका उसने 1952 के ओलंपिक्स में भी भाग लिया और वहा भी गोल्ड मैडल जीत कर इतिहास बना दिया। Karoly उस पिस्टल इवेंट में लगातार दो गोल्ड मैडल जीतने वाला पहला खिलाडी बना ।
दोस्तों यह थी Karoly की कहानी जिसने अपनी असीम इच्छासक्ति से वो कर के दिखाया जिसके बारे में आप और हम सोच भी नहीं सकते। सोचो यदि हमारे साथ ऐसा होता तो हम क्या करते, शायद हम पूरी जिन्दगी अपनी किस्मत और भगवान् को दोष देते रहते। पर Karoly ने ऐसा कुछ भी नहीं किया उसने अपना पूरा ध्यान अपने टारगेट पर लगाया।
इसलिए दोस्तों, जिन्दगी के किसी भी मोड़ पर आपको लगे की वक़्त और परिस्थितिया आपका साथ नहीं दे रहे, आपके लक्ष्य को प्राप्त करने में तो एक बार Karoly, उसके संधर्ष, उसकी इच्छाशक्ति के बारे में जरुर सोचना।
विल्मा रुडोल्फ - अपंगता से ओलम्पिक गोल्ड मैडल तक
और आखिर में सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' जी की एक प्रेरणास्पद कविता:-
|| कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ||
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है, चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है ।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है, चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है ।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है, जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है ।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में, बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में ।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।
असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो, क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो ।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम, संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम ।
कुछ किये बिना ही जय जयकार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।
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