Sunday 15 June 2014

भूपत सिंह चौहाण - इंडियन रॉबिन हुड - जिसे कभी पुलिस पकड़ नहीं पायी

यह बात आजादी के पहले की है। इस समय देश में राजा-रजवाड़ों का शासन चलता था। भारत की संपत्ति व संपदा लूटने में अंग्रेज कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे। इतना ही नहीं, अपने स्वार्थ के लिए देश के कई राजा-रजवाडे भी अंग्रेजों के साथ मिलकर देश को लूट रहे थे और जनता अनकों तरह की यातनाएं भुगतते हुए भूखी-प्यासी मर रही थी। इस समय देश में चारों ओर सिर्फ लूटपाट का ही नगाड़ा बज रहा था।

इसी समय वडोदरा के शासक गायकवाड परिवार को एक चिट्ठी मिलती है, जिसमें पूरे परिवार को धमकी लिखी थी..‘महल में काम करने वाले सभी 42 नौकरों को उनकी सेवानिवृत्ति के समय पांच-पांच वीघा जमीन दी जाए और इसकी जाहिर सूचना पूरे शहर में भी दी जाए। अगर आपने ऐसा नहीं किया तो परिवार के सभी सदस्यों की एक-एक कर हत्या कर दी जाएगी।’ इस धमकी भरे पत्र के नीचे नाम लिखा था.. भूपत सिंह चौहाण। यह वही भूपतसिंह था, जिसने वडोदरा से लेकर दिल्ली की सरकार तक के नाक में दम कर रखा था।

Bhupat singh chauhan 

इंग्लैंड के रॉबिनहुड या हिंदी फिल्मों की तरह लगने वाली यह कथा एक सच्ची घटना है। भूपतसिंह के कहर से जहां राजा-रजवाड़े और अंग्रेज कांपा करते थे, वहीं गरीबों के दिल में उसके लिए सर्वोच्च स्थान था। 

गुजरात के कठियावाड की बहादुर धरती का पानी ही कुछ ऐसा है कि पूरे एशिया में सिर्फ यहीं एशियाटिक लायंस पैदा होते हैं। मात्र प्राणियों में ही नहीं, कठियावाडी लोगों की रगों में भी ¨सहों का शौर्य दौड़ता है। उनकी आवाज में भी उनकी शूरवीरता छलकती है। कठियावाड के इतिहास पर नजर डालें तो यहां से लोगों की वीरगाथा का एक लंबा इतिहास है। इन्हीं में एक नाम आता है भूपत सिंह चौहाण का।

कठियावाड में एक समय आया था, जब भूपत सिंह पूरे देश के राजा-रजवाड़ों और अंग्रजों के लिए सिरदर्द बन गया था। अंतिम समय तक भूपत सिंह को न तो किसी राजा की सेना पकड़ सकी और न ही ब्रितानी फौजें। अंतत: कई अंग्रेजों को मौत की नींद सुला देने वाले भूपत सिंह के बिना ही अंग्रेजों को वापस इंग्लैंड लौटना पड़ा। अंग्रेजी शासन के अंत के बाद इधर भारत सरकार भी भूपत को कभी पकड़ नहीं सकी।

Bhupat singh chauhan 

कठियावाड में जन्मा भूपत सिंह बचपन से ही बहादुर था। तेज भागने घोड़ों पर सवार होकर हवा से बात करने की कला तो जैसे उसे वरदान में ही मिली थी। भूपत को जानने वाले लोग बताते हैं कि वह इतनी तेज दौड़ा करता था कि अगर उस समय ओलंपिक में भाग लेता तो कोई उसे हरा नहीं सकता था। लेकिन उसके भाग्य में कुछ और ही लिखा था। तेज भागना उसकी आदत थी, इसलिए वह ताउम्र भागता ही रहा।

भूपत के शिकार बने कई लोगों का परिवार अब भी कठियावाड और आसपास के क्षेत्रों में रहते हैं। भूपत की कई क्रूरता भरी कहानियां हैं तो कई उसकी शौर्यगाथाओं और गरीबों के प्रति उसके प्रेम का गुणगान करती हुई भी हैं।

यह 1920 का समय था और भारत पर अब पूरी तरह ब्रिटिश सरकार का शासन था। कुछ राजा-रजवाड़ा बचे भी तो वे अंग्रेजी सरकार के कठमुल्ले मात्र ही थे। इस समय अमरेली जिला के वरवाला गांव में भूपत का जन्म हुआ। उसका पूरा नाम भूपत सिंह बूब था। लेकिन उसने अपने लिए भूपत सिंह चौहाण नाम ही पसंद किया और वह इसी नाम से पहचाना गया। दरअसल भूपत के इस नाम के पीछे का मूल कारण यह था कि उसके वंशज चौहाणवंशी क्षत्रियों से ही संबंध रखते थे।


Group photograph of a Hunt

भूपत का बचपन वाघणिया में बीता। वह बचपन से ही बहुत बुद्धिशाली था। उसकी तर्क-वितर्क और निर्णय की शक्ति इतनी पैनी थी कि जवानी की दहलीज पर कदम रखते हुए ही उसकी नियुकित वाघणिया के राजा के दरबार में हो गई थी। इसके अलावा भूपत को तरह-तरह के खेलों का भी बहुत शौक था। उसकी यह प्रतिभा भी ज्यादा दिन छुपी नहीं कर सकी। जब भी राजा के दरबार में दौड़, घुड़दौड़, गोला फेंक जैसी स्पर्धाएं आयोजित होती तो वह अपने राज्य का प्रतिनिधित्व करते हुए कई अवार्ड भी राजा की झोली में डाल दिया करता था। बताया जाता है कि दरबार में नियुक्ति के बाद राज्य में आयोजित पहली स्पर्धा में ही वह सात खेलों में दूसरे नंबर पर रहा था। इसकी वजह से उसका दूर-दूर तक नाम प्रसिद्ध हो गया था।
लेकिन भूपत का जीवन शायद आलीशान महल में रहने के लिए नहीं था। इसलिए उसकी जिंदगी में एक साथ दो-दो ऐसी घटनाएं हुई कि उसने हथिया उठा लिए। दरअसल भूपत के जिगरी दोस्त और पारिवारिक रिश्ते से भाई राणा की बहन के साथ उन लोगों ने बलात्कार किया, जिनसे राणा की पुरानी दुश्मनी थी। जब इनसे बदला लेने राणा पहुंचा तो उन लोगों ने राणा पर भी हमला कर दिया। भूपत ने किसी तरह राणा को बचा लिया, लेकिन झूठी शिकायतों के चलते वह खुद इस मामले में फंस गया और उसे कालकोठरी में डाल दिया गया। बस, यहीं से खिलाड़ी भूपत मर गया और डाकू भूपत पैदा हो गया।

भूपत ने जेल से फरार होते ही पहली हत्या की। इस समय उसकी टोली में सिर्फ तीन ही व्यक्ति थे। लेकिन जैसे-जैसे वह अपराध की दुनिया में कदम बढ़ाता चला गया, उसके साथियों की संख्या भी बढ़ती चली गई। अपराध की चरम सीमा पर पहुंचने तक उसके 42 साथी थे और सब एक से बढ़कर एक बहादुर और क्रूर भी। भूपत उस समय का पहला ऐसा डाकू था, जिसने अपने 21-21 साथियों की दो टोलियां बना रखी थीं। इसमें भी खास बात यह है कि इन दोनों टोलियों के लिए सरदार नियुक्त थे, लेकिन हुक्म सिर्फ भूपत का ही चलता था। इसके अलावा दोनों टोलियां जंगल में अलग-अलग ही पड़ाव डाला करती थीं।

भूपत से गद्दारी करते हुए उसका खबरी या उसके साथी पकड़े जाते तो वह उन्हें जान से नहीं मारता था, बल्कि उनकी नाक व कान काट दिया करता था। भूपत की इस क्रूर सजा का शिकार हुए लोगों की संख्या 40 से अधिक है। इसमें चार व्यक्ति तो अब भी सुरेंद्रनजर जिला में रहते हैं। इनमें से एक व्यक्ति के बताए अनुसार भूपत का मानना था कि हत्या करने की बजाय जीवन भर के लिए सजा देना अन्य लोगों को भी डराता रहता है। इसके अलावा भूपत उसे धमकी भी दिया करता था कि अगर उसने आत्महत्या की तो फिर उसके बाकी बचे परिवार की हत्या कर दी जाएगी। इस तरह से वे नाक-कान कटे लोगों को मरने भी नहीं देता था।
भूपत सिंह को खौफनाक हैवान कहा जाता था। उसे अतिशय विकृत मानसिकता का व्यक्ति करार दिया गया था, लेकिन महिलाओं के मामले में उसकी तारीफ भी की जाती थी। क्योंकि डाकू और लुटेरे बनने के बाद भी उसके दिल में महिलाओं के लिए बहुत सम्मान था। उसने अपनी पूरी उम्र किसी भी महिला पर कभी हाथ नहीं उठाया। उसके अलावा उसके साथियों को भी निर्देश था कि कोई भी स्थिति हो, महिलाओं को सम्मान की ही नजर से देखा जाए।

1947 की आजादी के बाद पूरे देश में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे। इस दौरान भूपत और उसके साथियों ने अपनी दम पर सैकड़ों महिलाओं की आबरू बचाई। भूपत की इन्हीं अच्छाईयों की वजह से उसके क्रूर इतिहास को भुला दिया जाता था। इसके अलावा गरीब उसे अपना मसीहा भी मानते थे।

भूपत सिंह की इसी नेकनियती के कारण वह अनेकों बार पुलिस से बचा लिया गया। गुजरात में उसे कई बार पुलिस ने घेरा, लेकिन उसे बचने के लिए किसी न किसी का साथ मिल ही जाता था। कई बार तो उसे महिलाओं ने ही बचाया था। एक बार तो गिर के जंगल के पास के एक गांव की कई महिलाओं को इस आरोप में गिरफ्तार भी कर लिया गया था कि उन्होंने भूपत को भगाने में मदद की। लेकिन अखबारों में इसकी खबर आने और विवाद मचने के बाद सभी महिलाओं को मुक्त कर दिया गया था।
भूपत सिंह ने सैकड़ों बार पुलिस को चकमा दिया। देश आजाद होने के बाद 1948 में भूपत के कारनामे चरम पर पहुंच गए थे और पुलिस भूपत को रोकने और पकड़ने में पूरी तरह नाकाम हो गई थी। इस बात से सौराष्ट्र के गृहमंत्री रसिक लाल इस कदर गुस्सा थे कि उन्होंने पुलिस प्रशासन को यह आदेश दे दिया था कि.. जब तक भूपत पकड़ा नहीं जाता, तब तक के लिए पुलिस को 25 प्रतिशत कम सैलरी मिलेगी। महीनों तक पुलिस को 25 प्रतिशत कम सैलरी मिली, लेमिन भूपत पकड़ा नहीं गया। इसके बाद भूपत ने रसिकलाल को ही धमकी दे दी थी कि वे तुरंत पुलिस को पूरी सैलरी देने का आदेश सुनाए। और भूपत की इसी धमकी की वजह से ही पुलिस को पूरा वेतन मिलना शुरू हो गया था। यह भूपत के नाम की धाक ही थी।
इसके अलावा भूपत सिंह को पशु-पक्षियों की आवाजें निकालना व पहचानने की कला भी आती थी। यह हुनर उसने जंगल में ही आदिवासियों से सीखा था। इसका उसे भरपूर फायदा भी मिला। गिर जैसे खतरनाक जंगल में इसी कला की वजह से वह जीवित रह सका। एक बार पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में यह बात लिखी भी थी कि भूपत को पशु-पक्षियों की आवाज निकालने व पहचानने का हुनर आता है, इसलिए जब भी पुलिस जंगल में उसे घेरने घुसती है तो वह बच जाता है और उल्टे पुलिस की टीम ही मुश्किल में पड़ जाती है। इसलिए उसे जंगल में जाकर पकड़ना बहुत मुश्किल है।

एक बार जब भारी पुलिस दल ने भूपत को जंगल में चारों ओर से घेर लिया तो वह शेर की गुफा में छिप गया। लगभग दो दिनों तक भूपत गुफा से बाहर नहीं निकला। जबकि इस गुफा में सिंह का एक पूरा परिवार था। पुलिस इस गुफा तक पहुंच भी गई थी, लेकिन शेरों को देखकर उनकी हिम्मत गुफा में दाखिल होने की नहीं हुई। इसके अलावा उन्होंने यह भी सोचा कि कम से कम वह शेर की गुफा में तो नहीं छुपा होगा, वरना शेर उसे मारकर खा जाएंगे। जबकि पुलिस का यह अंदेशा था, पुलिस यह भूल गई थी कि वह कई सालों से उन्हीं शेरों के साथ रह रहा था। पुलिस के वापस जाने के बाद भूपत ने अपने साथियों तक अपने यह संदेशा पहुंचाया कि वह पुलिस के चंगुल से अब भी बाहर है। भूपत की यह अदा उसकी दिलेरी की कहानी खुद-ब-खुद बयां करती है।

Bhupat singh chauhan 

60 के दशक में डाकू भूपत सिंह अपने तीन खास साथियों के साथ देश छोड़कर गुजरात के सरहदी रास्ते कच्छ से पाकिस्तान पहुंच गया। हालांकि पाकिस्तान जाने के पीछे उसका कोई खास मकसद नहीं था। उसे मौत का खौफ भी नहीं था कि वह देश छोड़कर भागता। लेकिन कुछेक घटनाएं ऐसी हुईं कि भूपत कुछ समय के लिए पाकिस्तान चला गया। कुछ समय बाद उसने वापस भारत आने का इरादा किया, लेकिन भारत-पाक पर मचे घमासान के चलते उसके लिए यह मुमकिन नहीं हुआ।
 पाकिस्तानी सेना ने उसे गिरफ्तार कर लिया और उसे घुसपैठ के आरोप में जेल भेज दिया गया। उसे एक साल की सजा सुनाई गई। लेकिन सजा पूरी होने के बाद भूपत वापस भारत नहीं आया और वहीं स्थायी हो गया। पाकिस्तान में उसने मुस्लिम धर्म अंगीकार कर लिया और अब उसका अमीन युसुफ हो गया। धर्म परिवर्तन के बाद उसने मुस्लिम लड़की से निकाह किया। उसके चार बेटे और दो बेटियां हुईं। हालांकि उसने व उसके अन्य साथियों ने भारत आने की कई कोशिशें की, लेकिन उसकी यह इच्छा पूर्ण नहीं हो सकी और पाकिस्तान की धरती पर ही 2006 में उसने दुनिया से विदा ले ली।


Grave of  Bhupat singh chauhan 

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