Sunday 6 July 2014

शनिवार वाडा फोर्ट - इंडिया के टॉप हॉन्टेड प्लेस में है शामिल (Shaniwar wada fort - one of the most haunted place of India)

पढ़िए कुम्भलगढ़ फोर्ट के बारे में जिसकी दीवार है विशव की दूसरी सबसे बड़ी दीवार Link
शनिवार वाडा फोर्ट, महाराष्ट्र के पुणे में स्तिथ है। इस किले की नीव शनिवार के दिन रखी गई थी इसलिए इसका नाम शनिवार वाडा पड़ा। यह फोर्ट अपनी भव्यता और ऐतिहासिकता के लिए प्रसिद्ध है।  इसका निर्माण 18 वि शताब्दी में  मराठा साम्राज्य पर शासन करने वाले पेशवाओं ने करवाया था। यह किला 1818 तक पेशवाओं की प्रमुख गद्दी रहा था।  लेकिन इस किले के साथ एक काला अध्याय भी जुड़ा है। इस किले में 30 अगस्त 1773 की रात को 18 साल के  नारायण राव, जो की मात्र 16 साल की उम्र में मराठा साम्राज्य के पांचवे पेशवा बन थे, की षड्यंत्रपूर्वक ह्त्या कर दी गई थी। जब हत्यारे उसकी ह्त्या करने आये तो उसने ख़तरा भांप कर अपने काका (चाचा)  कक्ष की और "Kaka Mall Vachva" (Uncle Save Me) कहते हुए दौड़ लगाई पर बदकिस्मती  वहाँ पहुंचने से पहले मारा गया।  कहते है की किले में उसी बच्चे नारायण राव की आत्मा आज भी भटकती है और उसके द्वारा बोले गए आखिरी शब्द "काका माला वचाव" आज भी किले में सुनाई देते है। इसलिए इस किले को इंडिया के टॉप मोस्ट हॉन्टेड प्लेस  (Top most haunted place of India) में शामिल किया जाता है। आइये अब हम आपको इस किले के निर्माण से लेकर इस पर अंग्रेजो के अधिकार तक तथा नारायण राव की षड्यंत्रपूर्वक ह्त्या पर विस्तार से बताते है।



Shaniwar wada fort     Image credit TripAdvisor 

शनिवार वाडा फोर्ट का निर्माण :
इस किले की नींव पेशवा बाजीराव प्रथम ने 10 जनवरी 1730, शनिवार को रखी थी। इस किले का उदघाटन 22 जनवरी 1732 को किया गया था। हालांकि इसके बाद भी किले के अंदर कई इमारते और एक लोटस फाउंटेन का निर्माण हुआ था। शनिवार वाडा फोर्ट का निर्माण राजस्थान के ठेकेदारो ने किया था जिन्हे की काम पूर्ण होने के बाद पेशवा ने नाईक (Naik) की उपाधि से नवाज़ा था। इस किले में लगी टीक की लकड़ी जुन्नार (Junnar) के  जंगलो से, पत्थर चिंचवाड़ (Chinchwad) की खदानों से तथा चुना जेजुरी (Jejuri) की खदानों से लाया गया था। इस महल में 27 फ़रवरी 1828 को अज्ञात कारणों से भयंकर आग लगी थी।  आग को पूरी तरह बुझाने में सात दिन लग गए थे। इस से किले परिसर में बनी कई इमारते पूरी तरह नष्ट हो गई थी। उनके अब केवल अवशेष बचे है।  अब यदि हम इस किले की संरचना की बात करे तो किले में प्रवेश करने के लिए पांच दरवाज़े है।


Interiors of   Shaniwarwada         Image Credit Wikipedia

1 . दिल्ली दरवाज़ा  Dilli Darwaza (Delhi Gate) :
यह इस किले का सबसे प्रमुख गेट है जो  उत्तर दिशा  दिल्ली  तरफ खुलता है इसलिए इसे दिल्ली दरवाज़ा कहते है। यह इतना ऊँचा और चौड़ा की है पालकी सहित हाथी आराम से आ जा सकते है। हमले के वक़्त हाथियों से इस गेट को बचाने लिए इस गेट के दोनों पलड़ो में 12 इंच लम्बे 72 नुकीले कीले लगे हुए है जो कि हाथी के माथे तक की ऊँचाई पर है। दरवाज़े के दाहिने पलड़े में एक छोटा सा गेट और है जो की सैनिको के आने जाने के काम आता था।


Shaniwar Wada palace's Delhi Gate          Image Credit Wikipedia

2. मस्तानी दरवाज़ा  Mastani Darwaja (Mastani's Gate) or Aliibahadur Darwaja  :
यह दरवाज़ा दक्षिण दिशा की और खुलता है। बाजीराव  की पत्नी मस्तानी जब किले से बाहर जाती तो इस दरवाज़े का उपयोग करती थी।  इसलिए इसका नाम मस्तानी दरवाज़ा है। वैसे इसका एक और नाम अली बहादुर दरवाज़ा भी है।
3. खिड़की दरवाज़ा  Khidki Darwaja (Window Gate) :
यह दरवाज़ा पूर्व दिशा में खुलता है। इस दरवाज़े में खिड़की बनी हुई है इसलिए इसे खिड़की दरवाज़ा कहते है।

4. गणेश दरवाज़ा Ganesh Darwaja (Ganesh Gate) :
यह दरवाज़ा दक्षिण - पूर्व दिशा में खुलता है।  यह दरवाज़ा किला परिसर में स्थित गणेश रंग महल के पास स्थित है इसलिए इसे गणेश दरवाज़ा कहते है।
5. जंभूल दरवाज़ा या नारायण दरवाज़ा Jambhul Darwaja or Narayan Darwaja (Narayan's Gate) :
ये दरवाज़ा दक्षिण दिशा में खुलता है। ये दरवाज़ा मुख्यतः दासियों के महल आने जाने के काम आता था। नारायण राव पेशवा की ह्त्या के बाद उसकी लाश के टुकड़ो को इसी रास्ते से किले के बाहर ले जाया गया था इसलिए इसे नारायण दरवाज़ा भी कहा जाता है।


Shaniwar Wada palace Narayan's Gate           Image Credit Wikipedia

अब यदि किले के अंदर की इमारतों की बात करे तो इस किले में मुख्यतः तीन महल थे और तीनो ही 1828 में लगी आग में नष्ट हो गए। अब केवल उनके अवशेष है। इसके अलावा किले में एक 7 मंजिला ऊंची इमारत भी थी जिसकी सबसे ऊंची चोटी से 17 किलो मीटर दूर, आलंदी में स्थ्ति संत ज्ञानेश्वर के मंदिर का शिखर दिखाई देता था। यह इमारत भी आग में नष्ट हो गई थी। अब किले में कुछ छोटी इमारते ही सही सलामत है।


Shaniwar Wada palace walls and ruins below     Image Credit Wikipedia

लोटस फाउंटेन (Lotus Fountain) :
इस किले मुख्य आकर्षण कमल की आकार का एक फाउंटेन (फव्वारा) है। जिसे की हज़ारी करंजे कहते है। लेकिन इस फाउंटेन से भी एक दुखद इतिहास जुड़ा है। इसमें गिरकर घायल होने से एक राजकुमार की मृत्यु हो गई थी। 


Shaniwar Wada palace Lotus fountain      Image Credit Wikipedia   

जुन 1818 में पेशवा बाजीराव द्वितीय ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के सर जॉन मैलकम को यह गद्दी सौप दी और इस तरह पेशवाओ की शान रहे इस किले पर अंग्रेजो का अधिकार हो गया।

नारायण राव की हत्या :
पेशवा नाना साहेब के तीन पुत्र थे विशव राव, महादेव राव और नारायण राव।  सबसे बड़े पुत्र विशव राव पानीपत की तीसरी लड़ाई में मारे गए थे। नाना साहेब की मृत्यु के उपरान्त महादेव राव को गद्दी पर बैठाया गया। पानीपत की तीसरी  लड़ाई में महादेव राव पर ही रणनीति बनाने की पूरी जिम्मेदारी थी लेकिन उनकी बनाई हुई कुछ रणनीतियां बुरी तरह विफल रही थी फलस्वरूप इस युद्ध में मराठों की बुरी तरह हार हुई थी।  कहते है की इस युद्ध में मराठो के 70000 सैनिक मारे गए थे।  महादेव राव युद्ध में अपनी भाई की मृत्यु और मराठो की हार के लिए खुद को जिम्मेदार मानते थे।  जिसके कारण वो बहुत ज्यादा तनाव में रहते थे और इसी कारण गद्दी पर बैठने के कुछ दिनों बाद ही उनकी बिमारी से मृत्यु हो गई।

उनकी मृत्यु के पश्चात मात्र 16 साल की उम्र में नारायण राव पेशवा बने।  नाना साहेब के एक छोटे भाई रघुनाथ राव भी थे जिन्हे की सब राघोबा कहते थे। नारायण राव को पेशवा बनाने से काका (चाचा) राघोबा और काकी (चाची) अनादीबाई खुश नहीं थे। वो खुद पेशवा बनना चाहते थे उनको एक बालक का पेशवा बनना पसंद नहीं आ रहा था। दूसरी तरफ नारायण राव भी अपने काका को ख़ास पसंद नहीं करते थे क्योकि उन्हें लगता था की उनके काका ने एक बार उनके बड़े भाई महादेव राव की ह्त्या का प्रयास किया था।  इस तरह दोनों एक दूसरे को शक की नज़र से देखते थे।  हालात तब और भी विकट हो गए जब दोनों के सलाहकारों ने दोनों को एक दूसरे के विरुद्ध भड़काया। इसका परिणाम यह हुआ की नारायण राव ने अपने काका को घर में ही नज़रबंद करवा दिया।

इससे अनादि बाई और भी ज्यादा नाराज़ हो गई।  उधर राघोबा ने नारायण राव को काबू में करने का एक उपाय सोचा।  उनके साम्राज्य में ही भीलों का एक शिकारी कबीला रहता था जो की गार्दी (Gardi) कहलाते थे।  वो बहुत ही मारक लड़ाके थे। नारायण राव के साथ उनके सम्बन्ध खराब थे लेकिन राघोबा को वो पसंद करते थे।  इसी का फायदा उठाते हुए राघोबा ने उनके मुखिया सुमेर सिंह गार्दी को एक पत्र भेजा जिसमे उन्होंने लिखा 'नारायण राव ला धारा' जिसका मतलब था नारायण राव को बंदी बनाओ। लेकिन अनादि बाई को यहाँ एक खूबसूरत मौक़ा नज़र आया और उसने पत्र का एक अक्षर बदल दिया और कर दिया 'नारायण राव ला मारा'  जिसका मतलब था नारायण राव को मार दो।

पत्र मिलते ही गार्दियों के एक समूह ने रात को घात लगाकर महल पर हमला कर दिया। वो रास्ते की हर बाधा को हटाते हुए नारायण राव के कक्ष की और बढे। जब नारायण राव ने देखा की गार्दी हथियार लेकर खून बहाते हुए उसकी तरफ आ रहे है तो वो अपनी जान बचाने के लिए अपने काका के कक्ष की और "काका माला वचाव" (काका मुझे बचाओ) कहते हुए भागा।  लेकिन वह पहुँचने से पहले ही वो पकड़ा गया और उसके टुकड़े टुकड़े कर दिए गए।

यहाँ पर इतिहासकारो में थोड़ा सा मतभेद है कुछ उस बात का समर्थन करते है जो की हमने ऊपर लिखी जबकि कुछ का कहना है की नारायण राव अपने काका के सामने अपनी जान बचाने की गुहार करता रहा पर उसके काका ने कुछ नहीं किया और गार्दी ने राघोबा की आँखों के सामने उसके टुकड़े टुकड़े कर दिए। लाश के टुकड़ो को बर्तन में भरकर रात को ही महल से बाहर ले जाकर नदी में बहा दिया गया।

कहते है की किले में उसी बच्चे नारायण राव की आत्मा आज भी भटकती है और उसके द्वारा बोले गए आखिरी शब्द "काका माला वचाव" आज भी किले में सुनाई देते है।

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