आपने " The Great Wall Of China " के बारे में तो सुना ही होगा जो कि विशव कि सबसे बड़ी दीवार है पर क्या आपने विशव कि दूसरी सबसे लम्बी दीवार के बारे में सुना है जो कि भारत में स्थित है ?
यह है राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित कुम्भलगढ़ फोर्ट कि दीवार जो कि 36 किलोमीटर लम्बी तथा 15 फीट चौड़ी है। इस फोर्ट का निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया था। यह दुर्ग समुद्रतल से करीब 1100 मीटर कि ऊचाईं पर स्थित है। इसका निर्माण सम्राट अशोक के दूसरे पुत्र सम्प्रति के बनाये दुर्ग के अवशेषो पर किया गया था। इस दुर्ग के पूर्ण निर्माण में 15 साल ( 1443-1458 ) लगे थे। दुर्ग का निर्माण पूर्ण होने पर महाराणा कुम्भ ने सिक्के बनवाये थे जिन पर दुर्ग और इसका नाम अंकित था।
यह है राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित कुम्भलगढ़ फोर्ट कि दीवार जो कि 36 किलोमीटर लम्बी तथा 15 फीट चौड़ी है। इस फोर्ट का निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया था। यह दुर्ग समुद्रतल से करीब 1100 मीटर कि ऊचाईं पर स्थित है। इसका निर्माण सम्राट अशोक के दूसरे पुत्र सम्प्रति के बनाये दुर्ग के अवशेषो पर किया गया था। इस दुर्ग के पूर्ण निर्माण में 15 साल ( 1443-1458 ) लगे थे। दुर्ग का निर्माण पूर्ण होने पर महाराणा कुम्भ ने सिक्के बनवाये थे जिन पर दुर्ग और इसका नाम अंकित था।
दुर्ग कई घाटियों व पहाड़ियों को मिला कर बनाया गया है जिससे यह प्राकृतिक सुरक्षात्मक आधार पाकर अजेय रहा। इस दुर्ग में ऊँचे स्थानों पर महल,मंदिर व आवासीय इमारते बनायीं गई और समतल भूमि का उपयोग कृषि कार्य के लिए किया गया वही ढलान वाले भागो का उपयोग जलाशयों के लिए कर इस दुर्ग को यथासंभव स्वाबलंबी बनाया गया। इस दुर्ग के अंदर 360 से ज्यादा मंदिर हैं जिनमे से 300 प्राचीन जैन मंदिर तथा बाकि हिन्दू मंदिर हैं। इस दुर्ग के भीतर एक औरगढ़ है जिसे कटारगढ़ के नाम से जाना जाता है यह गढ़ सात विशाल द्वारों व सुद्रढ़ प्राचीरों से सुरक्षित है। इस गढ़ के शीर्ष भाग में बादल महल है व कुम्भा महल सबसे ऊपर है। महाराणा प्रताप की जन्म स्थली कुम्भलगढ़ एक तरह से मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी रहा है। महाराणा कुम्भा से लेकर महाराणा राज सिंह के समय तक मेवाड़ पर हुए आक्रमणों के समय राजपरिवार इसी दुर्ग में रहा। यहीं पर पृथ्वीराज और महाराणा सांगा का बचपन बीता था। महाराणा उदय सिंह को भी पन्ना धाय ने इसी दुर्ग में छिपा कर पालन पोषण किया था। हल्दी घाटी के युद्ध में हार के बाद महाराणा प्रताप भी काफी समय तक इसी दुर्ग में रहे।
तनोट माता मंदिर (जैसलमेर) - जहा पाकिस्तान के गिराए 3000 बम हुए थे बेअसर
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इसके निर्माण कि कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। 1443 में राणा कुम्भा ने इसका निर्माण शुरू करवाया पर निर्माण कार्य आगे नहीं बढ़ पाया, निर्माण कार्य में बहुत अड़चने आने लगी। राजा इस बात पर चिंतित हो गए और एक संत को बुलाया। संत ने बताया यह काम तभी आगे बढ़ेगा जब स्वेच्छा से कोई मानव बलि के लिए खुद को प्रस्तुत करे। राजा इस बात से चिंतित होकर सोचने लगे कि आखिर कौन इसके लिए आगे आएगा। तभी संत ने कहा कि वह खुद बलिदान के लिए तैयार है और इसके लिए राजा से आज्ञा मांगी।
संत ने कहा कि उसे पहाड़ी पर चलने दिया जाए और जहां वो रुके वहीं उसे मार दिया जाए और वहां एक देवी का मंदिर बनाया जाए। ठिक ऐसा ही हुआ और वह 36 किलोमीटर तक चलने के बाद रुक गया और उसका सिर धड़ से अलग कर दिया गया। जहां पर उसका सिर गिरा वहां मुख्य द्वार " हनुमान पोल " है और जहां पर उसका शरीर गिरा वहां दूसरा मुख्य द्वार है।
संत ने कहा कि उसे पहाड़ी पर चलने दिया जाए और जहां वो रुके वहीं उसे मार दिया जाए और वहां एक देवी का मंदिर बनाया जाए। ठिक ऐसा ही हुआ और वह 36 किलोमीटर तक चलने के बाद रुक गया और उसका सिर धड़ से अलग कर दिया गया। जहां पर उसका सिर गिरा वहां मुख्य द्वार " हनुमान पोल " है और जहां पर उसका शरीर गिरा वहां दूसरा मुख्य द्वार है।
महाराणा कुंभा के रियासत में कुल 84 किले आते थे जिसमें से 32 किलों का नक्शा उसके द्वारा बनवाया गया था। कुंभलगढ़ भी उनमें से एक है। इस किले की दीवार की चौड़ाई इतनी ज्यादा है कि 10 घोड़े एक ही समय में उसपर दौड़ सकते हैं। एक मान्यता यह भी है कि महाराणा कुंभा अपने इस किले में रात में काम करने वाले मजदूरों के लिए 50 किलो घी और 100 किलो रूई का प्रयोग करते थे जिनसे बड़े बड़े लेम्प जला कर प्रकाश किया जाता था।
इस दुर्ग के बनने के बाद ही इस पर आक्रमण शुरू हो गए लेकिन एक बार को छोड़ कर ये दुर्ग प्राय: अजेय ही रहा है। उस बार भी दुर्ग में पीने का पानी खत्म हो गया था और दुर्ग को बहार से चार राजाओ कि सयुक्त सेना ने घेर रखा था यह थे मुग़ल शासक अकबर, आमेर के राजा मान सिंह , मेवार के राजा उदय सिंह और गुजरात के सुल्तान। लेकिन इस दुर्ग की कई दुखांत घटनाये भी है जिस महाराणा कुम्भा को कोई नहीं हरा सका वही परमवीर महाराणा कुम्भा इसी दुर्ग में अपने पुत्र उदय कर्ण द्वारा राज्य लिप्सा में मारे गए।
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