हम में से शायद किसी ने भी कभी क्रोकोडाइल्स को पेड़ों पर चढ़ते हुए नहीं देखा है। लेकिन हाल ही टेनेसी विशवविधालय द्वारा क्रोकोडाइल्स पर किए गए एक विस्तृत शोध में यह पता चला है कि क्रोकोडाइल्स कि कुछ प्रजातियों में पेड़ों पर चढ़ने कि क्षमता विकसित हो चुकी है। यह क्रोकोडाइल्स कुछ फीट से लेकर 32 फीट कि ऊँचाई तक पड़ों पर चढ़ सकते है। हालांकि पहले भी यदा-कदा क्रोकोडाइल्स के पेड़ों पर चढ़ने कि खबरे आती रही है पर पहली बार इन पर विस्तृत शोध किया गया है। वर्तमान में पृथ्वी पर क्रोकोडाइल्स कि 23 प्रजातिया पायी जाती है। शोध में यह पाया गया कि ऑस्ट्रेलिया, नॉर्थ अमेरिका और अफ्रीका के दलदलों में पायी जाने वाली 4 प्रजातियों ने पेड़ों पर चढ़ने का गुण विकसित कर लिया है।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर इन चार प्रजातियों में ही पेड़ों पर चढ़ने का गुण क्यों विकसित हुआ ? इस सवाल का जवाब क्रोकोडाइल्स कि एक विशेष क्रिया में छुपा है जिसे Basking कहते है। क्रोकोडाइल्स वैसे तो पानी में रहना ज्यादा पसंद करते है। पर उन्हें अपने शारीर का तापमान नियंत्रित करने के लिए जमीन पर आकर घंटो धुप में लेटना पड़ता है जिसे कि Basking कहते है। यह क्रिया करना क्रोकोडाइल्स के लिए बहुत जरुरी होता है। अब हम बात करे उन चार प्रजातियों कि तो वो ऐसे दलदली क्षेत्रों में पाई जाती है जहा केवल पानी और पेड़ है , धुप सेकने के लिए सुखी जमीन काफी कम है और क्रोकोडाइल्स कि तादाद काफी ज्यादा है। इसलिय क्रोकोडाइल्स को इन विपरीत हालातों में ज़िंदा रहने के लिए यह गुण विकसित करना पढ़ा ताकि वो पेड़ कि ऊंची शाखाओ पर जाकर धुप सेक सके।
The American Crocodile on a mangrove tree, herpetologynotes.seh-herpetology.org/Kristine Gingras
क्रोकोडाइल्स में क्यों हुआ इस गुण का विकास :-अब सवाल यह उठता है कि आखिर इन चार प्रजातियों में ही पेड़ों पर चढ़ने का गुण क्यों विकसित हुआ ? इस सवाल का जवाब क्रोकोडाइल्स कि एक विशेष क्रिया में छुपा है जिसे Basking कहते है। क्रोकोडाइल्स वैसे तो पानी में रहना ज्यादा पसंद करते है। पर उन्हें अपने शारीर का तापमान नियंत्रित करने के लिए जमीन पर आकर घंटो धुप में लेटना पड़ता है जिसे कि Basking कहते है। यह क्रिया करना क्रोकोडाइल्स के लिए बहुत जरुरी होता है। अब हम बात करे उन चार प्रजातियों कि तो वो ऐसे दलदली क्षेत्रों में पाई जाती है जहा केवल पानी और पेड़ है , धुप सेकने के लिए सुखी जमीन काफी कम है और क्रोकोडाइल्स कि तादाद काफी ज्यादा है। इसलिय क्रोकोडाइल्स को इन विपरीत हालातों में ज़िंदा रहने के लिए यह गुण विकसित करना पढ़ा ताकि वो पेड़ कि ऊंची शाखाओ पर जाकर धुप सेक सके।
The Central African slender-snouted crocodile doesn't have to climb too high. (Photo : herpetologynotes.seh-herpetology.org) |
वैसे भी डार्विन ने कहा है कि या तो आप अपने आप को प्रकति के अनुकूल कर लो नहीं तो प्रकति आपको नष्ट कर देगी। प्रकति के इतिहास में हज़ारों ऐसी प्रजातिया हुई है जो प्रकति के अनुकूल नहीं ढल पाने के कारण विलुप्त हो गई। पर क्रोकोडाइल्स में अपने आपको प्रकति के अनुकूल ढालने कि बहुत ज्यादा काबिलियत होती है। यह इस बात से भी सिद्ध होता है कि पृथ्वी पर क्रोकोडाइल्स कि उपस्तिथि डायनोसॉर के समय से है, डायनसोर समय के साथ विलुप्त हो गए पर क्रोकोडाइल्स आज भी ज़िंदा है।
American Crocodile (Photo Via herpetologynotes.seh-herpetology.org)
इन चारों प्रजातियों में भी चढ़ने कि क्षमता अलग-अलग है। जहा अफ्रीकी क्रोकोडाइल्स ज्यादा ऊँचाई तक नहीं चढ़ सकते वही अमेरिकन क्रोकोडाइल्स काफी ऊँचाई तक चढ़ जाते है।
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