लैंड डाइविंग का शुमार विशव कि सबसे खतरनाक परम्पराओं मे होता है। यह
परम्परा वनातू आइलैंड मे हजारों सालो से चली आ रही है। इस परम्परा में आदमी
लगभग 100 फ़ीट ऊंंचे लकड़ी के टॉवर से बिन किसी सूरक्षा इंतज़ाम के छलांग
लगाते है। उनके दोनों पैरों में टखने के पास पेड कि लताये बंधी होती है।
लताओं की लम्बाई इतनी होती है कि आदमी का सीना धरती को स्पर्श कर पाये।
यदि उसकी लम्बाई छोटी और बड़ी रह जाए तो इन्सान के साथ बडी दुर्घटना
घट सकती है। इसे आप आज की बंगी जम्पिंग (Bungee jumping) की पूर्वज
कह सकते है।
नाराज़ पत्नि के घर से भागने से शुरु हुई थी यह परम्परा :
इस परम्परा कि शुरुआत से जुडी क़हानी भी काफि रौचक है। इस परंपरा की शुरुआत टमली नाम की एक औरत के अपने पति से नाराज होकर घर से भाग जाने से शुरू हुई मानी जाती है। कहा जाता है कि टमली अपने पति के ज्यादा शारीरिक संबंध बनाने की आदत से परेशान थी। यहां की किंवदंतियों में टमली के पति को काफी बलवान और हष्ट-पुष्ट पुरुष के रूप में चित्रित किया गया है।
पति से असंतुष्ट टमली एक दिन घर से भागकर जंगल में चली गई। टमली के पति ने उसका पीछा किया तो वो जंगल में ही एक बरगद के पेड़ पर चढ़ गई। पत्नी को पेड़ पर चढ़े देख पति भी गुस्से से पेड़ पर चढ़ गया। ये देख टमली ने अपने पैर जंगल की लता से बांधे और पेड़ से छलांग लगा दी।
टमली को छलांग लगाते देख उसके पति ने भी पेड़ से छलांग लगा दी। टमली ने अपने पैरों को लता से बांधा हुआ था, इसलिए वो तो बच गई, लेकिन उसका पति नहीं बच पाया। पेड़ से कूदने से उसकी मृत्यु हो गई। तब से यहां के लोग लैंड डाइविंग करते आ रहे है ताकि उनके साथ वैसा धोका दुबारा ना हो।
कई मान्यताओ से जुडी है यह परम्परा :
लैंड डाइविंग कि यह परम्परा कई मान्याताओं से जुडी है ऐसा माना जाता है कि जो भी ग्रामीण इस परम्परा को सफलतापूर्वक पूरी करता है वो भविष्य मे बिमारीयों से मुक्त्त रहता है तथा उसका पुरुषत्व अन्य लोगो से ज्यादा होता है। दूसरी मान्यता रतालू के उत्पादन से जुडी है ऐसी मान्यता है की यदि सम्पूर्ण परम्परा अच्छी तरह से पूरी हो जाति है तो उस साल रतालू कि फसल बहुत अच्छी होति है।
लैंड डाइविंग कि तैयारी :-
लैंड डाइविंग कि यह परम्परा मई और जून महिनो मे निभाई जाती है। इसके लिया लकड़ियों का एक ढांचा तैयार किया जाता है। टावर को तैयार करने मे लगभग महीने भर का टाइम लग जाता है। इस पुरे टाइम डाइविंग मे भाग लेने वाले लोगो को अपनी पत्नियों और सेक्स से दुर रहना पड़ता है , जबकि औरते टावर के पास नही जा सकती है। डाइविंग वाले दिन से पहली रात सारे प्रतिभागी, बुरी आत्माओं से बचने के लिये टावर के नीचे हि सोते है। डाइविंग वाले दिन सारे प्रतिभागी नारियल के तेल कि मालिश करके गले मे जंगली सुअर के दांत पहनते है।
हर साल लगभग 10 से 20 लोग यह डाइव करते है। पुरे टावर में अलग अलग ऊँचाई पर तीन चार प्लेटफार्म बने होते है। डाइविंग की शरुआत सबसे नीचले प्लेटफार्म से, सबसे कम अनुभवी प्रतिभागी से की जाती है और अन्त सबसे अनुभवी प्रतिभागी से सबसे उंचे प्लॅटफॉर्म से कि जाति है। जब आदमी डाइविंग करते है तब औरते घास कि ड्रेस पहन कर नाचती है।
बन चुका है टूरिस्ट अट्रैक्शन :-
हर साल होने वाल यह आयोजन अब एक एक प्रमुख टूरिस्ट इवेंट बन चुका है। इसे देखे के लिए टूरिस्ट को 125 $ की फीस चुकानी पड़ती है। अब चुकी यह वनातू लोगो के लिये कमाई का बेहतरीन ज़रिया बन चुका है इसलिए अब लैंड डाइविंग अप्रैल से जून तक हर सफ्ताह कि जाती लेकिन रीती - रिवाज़ों का पुरा ध्यान रखा जाता है। पर्यटक भी चाहे तो वो भी डाइविंग कर सकते है लेकिन जान के जोखिम को देखते हुए बहुत कम लोग यह हिम्मत कर पाते है। 2006 से इसकी वीडियो ग्राफी करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है।
लैंड डाइविंग का वीडियो (Video of Land Diving) :
अन्य रोमांचकारी लेख :-
इस परम्परा कि शुरुआत से जुडी क़हानी भी काफि रौचक है। इस परंपरा की शुरुआत टमली नाम की एक औरत के अपने पति से नाराज होकर घर से भाग जाने से शुरू हुई मानी जाती है। कहा जाता है कि टमली अपने पति के ज्यादा शारीरिक संबंध बनाने की आदत से परेशान थी। यहां की किंवदंतियों में टमली के पति को काफी बलवान और हष्ट-पुष्ट पुरुष के रूप में चित्रित किया गया है।
पति से असंतुष्ट टमली एक दिन घर से भागकर जंगल में चली गई। टमली के पति ने उसका पीछा किया तो वो जंगल में ही एक बरगद के पेड़ पर चढ़ गई। पत्नी को पेड़ पर चढ़े देख पति भी गुस्से से पेड़ पर चढ़ गया। ये देख टमली ने अपने पैर जंगल की लता से बांधे और पेड़ से छलांग लगा दी।
टमली को छलांग लगाते देख उसके पति ने भी पेड़ से छलांग लगा दी। टमली ने अपने पैरों को लता से बांधा हुआ था, इसलिए वो तो बच गई, लेकिन उसका पति नहीं बच पाया। पेड़ से कूदने से उसकी मृत्यु हो गई। तब से यहां के लोग लैंड डाइविंग करते आ रहे है ताकि उनके साथ वैसा धोका दुबारा ना हो।
कई मान्यताओ से जुडी है यह परम्परा :
लैंड डाइविंग कि यह परम्परा कई मान्याताओं से जुडी है ऐसा माना जाता है कि जो भी ग्रामीण इस परम्परा को सफलतापूर्वक पूरी करता है वो भविष्य मे बिमारीयों से मुक्त्त रहता है तथा उसका पुरुषत्व अन्य लोगो से ज्यादा होता है। दूसरी मान्यता रतालू के उत्पादन से जुडी है ऐसी मान्यता है की यदि सम्पूर्ण परम्परा अच्छी तरह से पूरी हो जाति है तो उस साल रतालू कि फसल बहुत अच्छी होति है।
लैंड डाइविंग कि तैयारी :-
लैंड डाइविंग कि यह परम्परा मई और जून महिनो मे निभाई जाती है। इसके लिया लकड़ियों का एक ढांचा तैयार किया जाता है। टावर को तैयार करने मे लगभग महीने भर का टाइम लग जाता है। इस पुरे टाइम डाइविंग मे भाग लेने वाले लोगो को अपनी पत्नियों और सेक्स से दुर रहना पड़ता है , जबकि औरते टावर के पास नही जा सकती है। डाइविंग वाले दिन से पहली रात सारे प्रतिभागी, बुरी आत्माओं से बचने के लिये टावर के नीचे हि सोते है। डाइविंग वाले दिन सारे प्रतिभागी नारियल के तेल कि मालिश करके गले मे जंगली सुअर के दांत पहनते है।
इस डाइविंग मे सात साल कि उम्र से बच्चे भाग लेना शुरू कर देते है। सबसे
ऊँचाई से कूदने वाले जम्पर लगभग 72 km/h की स्पीड प्राप्त करते है। डाइविंग
करते वक़्त प्रतिभागी अपने दोनो हाथो को चोट लगने से बचाने के लिये
उसे अपने सीने के आगे कर लेते है, तथा अपनी गर्दन को ऊपर कि साइड रखते है
ताकि जमीन से पहले चेस्ट वाला हिस्सा टकराए।
बन चुका है टूरिस्ट अट्रैक्शन :-
हर साल होने वाल यह आयोजन अब एक एक प्रमुख टूरिस्ट इवेंट बन चुका है। इसे देखे के लिए टूरिस्ट को 125 $ की फीस चुकानी पड़ती है। अब चुकी यह वनातू लोगो के लिये कमाई का बेहतरीन ज़रिया बन चुका है इसलिए अब लैंड डाइविंग अप्रैल से जून तक हर सफ्ताह कि जाती लेकिन रीती - रिवाज़ों का पुरा ध्यान रखा जाता है। पर्यटक भी चाहे तो वो भी डाइविंग कर सकते है लेकिन जान के जोखिम को देखते हुए बहुत कम लोग यह हिम्मत कर पाते है। 2006 से इसकी वीडियो ग्राफी करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है।
लैंड डाइविंग का वीडियो (Video of Land Diving) :
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