हम भारतवासी बड़े हि आस्थावान इन्सान होते है। हम अपनी आस्था से किसी को भी भगवान का दर्ज़ा दे सकते है। इसी की एक जीती-जागती मिसाल है लखनऊ मे मुसा बाग स्तिथ कैप्टेन वेल्स उर्फ़ कप्तान साहब उर्फ़ सिगरेट बाबा की मज़ार जो कि है तो एक ब्रिटिश क्रिश्चयन सैनिक कि मज़ार, पर है हिन्दु और मुस्लिम भक्तोँ कि आस्था का केन्द्र । इन्ही भक्तों ने अपनी आस्था से कैप्टेन वेल्स को एक सन्त क दर्ज़े दे दिया है। यहाँ पर हर गुरुवार को बडी संख्या मे श्रदालु दुर-दूर से आते है। कहते है की कैप्टन वेल्स को सिगरेट का बेहद शौक था, इसलिय यहाँ आने वाले लोग मजार पर प्रसाद कि सिगरेट चढ़ाते है। उनकी मान्यता है की सिगरेट चढाने से बाबा प्रसन्न होगे और उनकि मुरादे पूरी करेंगे। इसलिए लोग इसे सिगरेट वाले बाबा कि मज़ार भि कह्ते है।
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कहा पर है सिगरेट बाबा कि मजार :-
लखनऊ शहर से बाहर हरदोई रोड से कुछ दूरी पर मूसाबाग के खंडहर स्थित है। इन्हीं खंडहारों के पीछे स्थित है हजरत सैयद इमाम अली शाह की दरगाह। इसी दरगाह से थोड़ा आगे खेतों के बीच यह मजार है। मूसाबाग का निर्माण अवध के नवाब आसिफुद्दौला ने 1775 में अपनी आरामगाह के रूप मे करवाया था। एक किवदंती है की नवाब साहब ने यहाँ पर एक चूहे (मूषक) को मारा था इसलिए इसका नाम मुसबाग पड़ा। सन 1857 के स्वंत्रता संग्राम मे मुसबाग कि इमारते अँग्रेज सैनिको और भारतिय स्वंत्रता सेनानियों के बीच हुई गोलाबारी मे तहस-नहस हो गई थी। आज मूसाबाग़ के केवल वहीं खंडहर शेष है।
लखनऊ शहर से बाहर हरदोई रोड से कुछ दूरी पर मूसाबाग के खंडहर स्थित है। इन्हीं खंडहारों के पीछे स्थित है हजरत सैयद इमाम अली शाह की दरगाह। इसी दरगाह से थोड़ा आगे खेतों के बीच यह मजार है। मूसाबाग का निर्माण अवध के नवाब आसिफुद्दौला ने 1775 में अपनी आरामगाह के रूप मे करवाया था। एक किवदंती है की नवाब साहब ने यहाँ पर एक चूहे (मूषक) को मारा था इसलिए इसका नाम मुसबाग पड़ा। सन 1857 के स्वंत्रता संग्राम मे मुसबाग कि इमारते अँग्रेज सैनिको और भारतिय स्वंत्रता सेनानियों के बीच हुई गोलाबारी मे तहस-नहस हो गई थी। आज मूसाबाग़ के केवल वहीं खंडहर शेष है।
कब बनी कैप्टेन वेल्स कि मजार :-
कैप्टन वेल्स ब्रिटिश सेन मे कैप्टेन थे। 21 मार्च 1858 को मूसाबाग में अंग्रेज़ सैनिको और अवध के स्वंत्रता सेनानियों के बीच युद्ध हुआ। अंग्रेज़ों का नेतृत्व कैप्टन वेल्स और अवध सेनानियों का नेतृत्व मौलवी अहमद उल्लाह शाह कर रहे थे। वैसे तो यह लड़ाई ब्रिटिश सेना ने जीती थी पर इस लड़ाई मे कैप्टेन वेल्स मारे गये थे।बाद में उनके दोस्त कैप्टन L.B.Jones ने यहाँ पर उनकी कब्र बनवाई। कब्र पर अभी भी एक पत्थर लगा हुआ है जिस पर 21 मार्च 1858 की तारीख और कैप्टन वेल्स क नाम है।
कैप्टन वेल्स ब्रिटिश सेन मे कैप्टेन थे। 21 मार्च 1858 को मूसाबाग में अंग्रेज़ सैनिको और अवध के स्वंत्रता सेनानियों के बीच युद्ध हुआ। अंग्रेज़ों का नेतृत्व कैप्टन वेल्स और अवध सेनानियों का नेतृत्व मौलवी अहमद उल्लाह शाह कर रहे थे। वैसे तो यह लड़ाई ब्रिटिश सेना ने जीती थी पर इस लड़ाई मे कैप्टेन वेल्स मारे गये थे।बाद में उनके दोस्त कैप्टन L.B.Jones ने यहाँ पर उनकी कब्र बनवाई। कब्र पर अभी भी एक पत्थर लगा हुआ है जिस पर 21 मार्च 1858 की तारीख और कैप्टन वेल्स क नाम है।
कैसे बने सन्त :-
इस मज़ार कि सबसे बड़ी खासियत यह किसी को भि नहि पता कि कैप्टेन वेल्स को कब एक संत का दरजा दे दिया गया और कब से यहा पर पूजा पाठ शुरु हुआ। पर चाहे जो कुछ भी हो लोगो यहाँ असीम आस्था है। वो यहाँ पर आके सिगरेट चढ़ाकर मुरादे मांगते है और जब मुराद पूरी हो जाति है तो वापस आकर महँगी शराब और सिगरेट चढ़ाते है।
इस मज़ार कि सबसे बड़ी खासियत यह किसी को भि नहि पता कि कैप्टेन वेल्स को कब एक संत का दरजा दे दिया गया और कब से यहा पर पूजा पाठ शुरु हुआ। पर चाहे जो कुछ भी हो लोगो यहाँ असीम आस्था है। वो यहाँ पर आके सिगरेट चढ़ाकर मुरादे मांगते है और जब मुराद पूरी हो जाति है तो वापस आकर महँगी शराब और सिगरेट चढ़ाते है।
1 st image credit http://www.express.co.uk
2nd, 3rd, 4th images credit http://www.bhaskar.com/
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